Tuesday, 26 March 2013

इन्सनियत का सुनहरा युग!

अस्सलामुअलैकुम प्यारे दोस्तों ! जैसा की आप सब आज देख रहे हैं कि आज मिल्लते इस्लामिया जिस गुरबत और अज्ञानता के दौर से गुज़र रही है , क्या यही सूरतेहाल आज से 1400 साल पहले मौजूद थी ? नहीं | हर एक कौम का एक वक्त उरूज का होता है और इसी तरह उसके ज़वाल का भी वक़्त मुक़र्रर होता है |जब आज से 1400 साल पहले अरब की वादियों में ज्ञान की पुकार हुई थी ठीक उसी वक़्त पूरी दुनिया अज्ञानता के दौर से गुज़र रही थी | अरब के मरुस्थल से एक आवाज़ उठ रही थी की आओ सच्चाई की तरफ , आओ नेकी की तरफ , आओ भलाई की तरफ | उस वक़्त ज्ञान का सितारा अरब के रेगिस्तान से उठा और देखते ही देखते सारी दुनिया में छा गया जिसमें - ईरान , बुखारा , समरकंद, इराक, उन्दुलिस मिस्र मौजूद हैं | इसी वक़्त इस्लाम पूरी दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त बन गया, उस दौर को जिसे Medieval पीरियड कहा जाता है (पांचवीं सदी से पंद्रहवीं सदी तक) उस दौर के मुसलमानों ने सियासी यहाँ तक की ज्ञान की उंचाइयों को छू लिया था | उसी दौर ने मुसलामानों में ऐसे विद्वान पैदा किये की उन्हों ने अपनी सलाहियत और सूझ बुझ से सारे आलम को अचरज में डाल दिया था , इन्हीं विद्वानों ने आज के आधुनिक युग को जन्म दिया | इन विद्वानों में - अल-ख्वारज़मी , अल-बैरूनी , इब्न-सीना, उमर खय्याम , इब्न-नफीस , अहमद-बिन-यूसुफ अल-मिसरी, अब्बास इब्न फर्नास , आदि विख्यात हैं | अर्थशास्त्र के विद्वानों में - इमाम अबू हनीफा , इमाम अहमद बिन हंबल , इमाम शाफ़ई , इमाम मालिक , इमाम बुखारी आदि विख्यात हैं | हम अपने आज के दौर पर गौर करें तो हमें पता चलेगा की हम कितने पिछड़ चुके हैं | वह कौम जिसने जंगल की और सेहरा की संस्कृति को मुहज्ज़िब बनाया आज वही इतनी पिछड़ गयी है ? यह कैसे मुमकिन है ? हमें इन बातों पर गहन विचार करने की आवश्यकता है | हमें अब अपने आज को सुधारना है क्योंकि जब हम अपने आज को सुधरेंगे तभी एक बेहतर भविष्य की कल्पना मुमकिन है|

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